
कू -ए- क़ातिल में चले जैसे शहीदों का जुलूस,
ख़्वाब यूं भीगती आँखों को सजाने निकले|
अमजद इस्लाम अमजद
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कू -ए- क़ातिल में चले जैसे शहीदों का जुलूस,
ख़्वाब यूं भीगती आँखों को सजाने निकले|
अमजद इस्लाम अमजद
दश्त-ए-तन्हाई ए हिजरा में खड़ा सोचता हूं,
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले|
अमजद इस्लाम अमजद
दिल ने एक ईंट से तामीर किया ताजमहल,
तूने एक बात कही लाख फसाने निकले|
अमजद इस्लाम अमजद
फ़स्ल-ए-गुल आई फ़िर एक बार असीनाने-वफ़ा,
अपने ही खून के दरिया में नहाने निकले|
अमजद इस्लाम अमजद
चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले,
कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले|
अमजद इस्लाम अमजद