
राख़ कितनी राख़ है, चारों तरफ बिख़री हुई,
राख़ में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख ।
दुष्यंत कुमार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
राख़ कितनी राख़ है, चारों तरफ बिख़री हुई,
राख़ में चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख ।
दुष्यंत कुमार
हसरतें राख हो गईं लेकिन,
आग अब भी कहीं दबी-सी है|
जावेद अख़्तर