
उससे दरयाफ़्त न करना कभी दिन के हालात,
सुब्ह का भूला जो लौट आया हो घर शाम के बाद|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
आसमान धुनिए के छप्पर सा
उससे दरयाफ़्त न करना कभी दिन के हालात,
सुब्ह का भूला जो लौट आया हो घर शाम के बाद|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
मैं देर रात गए जब भी घर पहुँचता हूँ,
वो देखती है बहुत छान के फटक के मुझे|
राहत इन्दौरी