
मै-ख़ाने में कुछ पी चुके कुछ जाम ब-कफ़ हैं,
साग़र नहीं आता है तो अपना नहीं आता|
आनंद नारायण मुल्ला
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मै-ख़ाने में कुछ पी चुके कुछ जाम ब-कफ़ हैं,
साग़र नहीं आता है तो अपना नहीं आता|
आनंद नारायण मुल्ला
वीराँ है मयकदा ख़ुमो-सागर उदास हैं,
तुम क्या गये कि रूठ गए दिन बहार के|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
झूठे जग में सच्चे सुख की,
क्या तो कोई आस लगाए ।
देवालय हो या मदिरालय,
जहाँ गए जाकर पछताए ।
बालस्वरूप राही
फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूंढे हमने बहाने हों,
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सचमुच के मयख़ाने हों|
इब्ने इंशा
क़ौस इक रंग की होती है तुलू
एक ही चाल भी पैमाने की,
गोशे-गोशे में खड़ी है मस्जिद
शक्ल क्या हो गई मय-ख़ाने की|
कैफ़ी आज़मी
पीते तो हमने शैख़ को देखा नहीं मगर,
निकला जो मै-कदे से तो चेहरे पे नूर था|
आनंद नारायण ‘मुल्ला’
साक़िया हम को मुरव्वत चाहिए,
शहर में हैं वरना मयखाने बहुत|
महेन्द्र सिंह बेदी ‘सहर’
मदिरालय की मेज़ों पर,
सौदे गंगा जल के हैं।
बालस्वरूप राही
यारो जो होगा देखेंगे, ग़म से तो हो निजात,
लेकर ख़ुदा का नाम, चलो मयकदे चलें|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
अच्छा, नहीं पियेंगे जो पीना हराम है,
जीना न हो हराम, चलो मयकदे चलें|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’