
लाई फिर इक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना तेरे शहर में,
फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में|
कैफ़ी आज़मी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
लाई फिर इक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना तेरे शहर में,
फिर बनेंगी मस्जिदें मय-ख़ाना तेरे शहर में|
कैफ़ी आज़मी
मय-कदों के भी होश उड़ने लगे,
क्या तिरी आँख की जवानी है|
फ़िराक़ गोरखपुरी
‘मुल्ला’ का मस्जिदों में तो हमने सुना न नाम,
ज़िक्र उसका मै-कदों में मगर दूर दूर था|
आनंद नारायण ‘मुल्ला’