
हिजाबों को समझ बैठा मैं जल्वा,
निगाहों को बड़ा धोका हुआ है|
फ़िराक़ गोरखपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हिजाबों को समझ बैठा मैं जल्वा,
निगाहों को बड़ा धोका हुआ है|
फ़िराक़ गोरखपुरी
ख़ुमार-ए-मय में वो चेहरा कुछ और लग रहा था,
दम-ए-सहर जब ख़ुमार उतरा तो मैं ने देखा|
मुनीर नियाज़ी
मैं नीम-शब आसमाँ की वुसअ’त को देखता था,
ज़मीं पे वो हुस्न-ज़ार उतरा तो मैंने देखा|
मुनीर नियाज़ी
अपनी अपनी चाहतें हैं लोग अब जो भी कहें,
इक परी-पैकर* को इक आशुफ़्ता-सर** अच्छा लगा|
*सुंदरी, **सिरफिरा
अहमद फ़राज़
हज़ारों जान देते हैं बुतों की बेवफ़ाई पर,
अगर उनमें से कोई बा-वफ़ा होता तो क्या होता|
चकबस्त बृज नारायण
वो जो तुम्हारे हाथ से आकर निकल गया,
हम भी क़तील हैं उसी ख़ाना-ख़राब के|
आदिल मंसूरी
फिर कौन भला दाद-ए-तबस्सुम उन्हें देगा,
रोएँगी बहुत मुझसे बिछड़ कर तिरी आँखें|
मोहसिन नक़वी
अब हुस्न का रुत्बा आली है अब हुस्न से सहरा ख़ाली है,
चल बस्ती में बंजारा बन चल नगरी में सौदागर हो|
इब्न ए इंशा
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है,
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है|
बशीर बद्र
तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं,
महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है|
साहिर लुधियानवी