
बाहर की कमाई ने बेकल,
अब गाँव में बसना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही
आसमान धुनिए के छप्पर सा
बाहर की कमाई ने बेकल,
अब गाँव में बसना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही
जब से वो समन्दर पार गया,
गोरी ने सँवरना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही
कुछ अबके हुई बरसात ऐसी,
खेतों ने लहकना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही
पिंजरे की सम्त चले पंछी,
शाख़ों ने लचकना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही
पोशाक बहारों ने बदली,
फूलों ने महकना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही
जब दिल ने तड़पना छोड़ दिया,
जलवों ने मचलना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही
मैं जब लौटा तो कोई और ही आबाद था “बेकल”,
मैं इक रमता हुआ जोगी, नहीं कोई मकाँ मेरा|
बेकल उत्साही
कहीं बारूद फूलों में, कहीं शोले शिगूफ़ों में,
ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे, है यही जन्नत निशाँ मेरा|
बेकल उत्साही
पड़ेगा वक़्त जब मेरी दुआएँ काम आएंगी,
अभी कुछ तल्ख़ लगता है ये अन्दाज़-ए-बयाँ मेरा|
बेकल उत्साही
सुकूँ पाएँ चमन वाले हर इक घर रोशनी पहुँचे,
मुझे अच्छा लगेगा तुम जला दो आशियाँ मेरा|
बेकल उत्साही