
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज,
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज,
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे|
राहत इन्दौरी
डाल से बिछुड़े परिंदे आसमाँ मे खो गए,
इक हकी़क़त थे जो कल तक दास्ताँ मे खो गए|
राजेश रेड्डी
पिंजरे की सम्त चले पंछी,
शाख़ों ने लचकना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही
हुई शाम यादों के इक गाँव में,
परिंदे उदासी के आने लगे|
बशीर बद्र
आसमां भर गया परिंदों से,
पेड़ कोई हरा गिरा होगा|
बशीर बद्र
थके-हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटें,
सलीक़ा-मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है|
वसीम बरेलवी
बिजली के तार पे बैठा हुआ हँसता पंछी,
सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा|
कैफ़ी आज़मी
शोर यूं ही न परिंदों ने मचाया होगा,
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा|
कैफ़ी आज़मी
दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक,
चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक|
कुंवर बेचैन
कैसा प्यारा मंज़र था जब देख के अपने साथी को,
पेड़ पे बैठी इक चिड़िया ने अपने पर फैलाये थे|
क़तील शिफ़ाई