
दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं,
हम परिंदे कहीं जाते हुए मर जाते हैं|
अब्बास ताबिश
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दश्त में प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं,
हम परिंदे कहीं जाते हुए मर जाते हैं|
अब्बास ताबिश
परिंदे होते तो डाली पे लौट भी जाते,
हमें न याद दिलाओ कि शाम हो गई है|
राजेश रेड्डी
कोई नग़्मा धूप के गाँव सा कोई नग़्मा शाम की छाँव सा,
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किसका कलाम है|
बशीर बद्र
खुली हवाओं में उड़ना तो उसकी फ़ितरत है,
परिंदा क्यूँ किसी शाख़-ए-शजर का हो जाए|
वसीम बरेलवी
खोल के खिड़की चाँद हँसा फिर चाँद ने दोनों हाथों से,
रंग उड़ाए फूल खिलाए चिड़ियों को आज़ाद किया|
निदा फ़ाज़ली
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ,
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ|
राहत इन्दौरी
कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ,
कुछ को लेकिन आसमानों के ख़ज़ाने चाहिएँ|
राजेश रेड्डी
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज,
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे|
राहत इन्दौरी
डाल से बिछुड़े परिंदे आसमाँ मे खो गए,
इक हकी़क़त थे जो कल तक दास्ताँ मे खो गए|
राजेश रेड्डी
पिंजरे की सम्त चले पंछी,
शाख़ों ने लचकना छोड़ दिया|
बेकल उत्साही