
अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत करके,
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत करके,
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते|
राहत इन्दौरी
तेरी गली में आ निकले थे दोष हमारा इतना था,
पत्थर मारे, तोहमत बाँधी, ऐब लगाया लोगों ने|
कैफ़ भोपाली
दुनिया है ये किसी का न इसमें क़ुसूर था,
दो दोस्तों का मिल के बिछड़ना ज़रूर था|
आनंद नारायण ‘मुल्ला’
किसको इल्ज़ाम दूँ मैं किसको ख़तावार कहूँ,
मेरी बरबादी का बाइस तो छुपा है मुझमें|
राजेश रेड्डी