
इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है|
दुष्यंत कुमार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है|
दुष्यंत कुमार
सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई,
और मुझको एक कश्ती बादबानी दे गया|
जावेद अख़्तर
दिन डूबे हैं या डूबे बारात लिये कश्ती,
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता|
मीना कुमारी
भटक रही थी जो कश्ती वो ग़र्क-ए-आब हुई,
चढ़ा हुआ था जो दरिया उतर गया यारो|
शहरयार