
हर शय से बे-नियाज़ रहे जिनमें हुस्न ओ इश्क़,
ऐ ज़िंदगी बता कि वो लम्हे किधर गए|
महेश चंद्र नक़्श
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हर शय से बे-नियाज़ रहे जिनमें हुस्न ओ इश्क़,
ऐ ज़िंदगी बता कि वो लम्हे किधर गए|
महेश चंद्र नक़्श