
और तो सब कुछ ठीक है लेकिन कभी-कभी यूँ ही,
चलता-फिरता शहर अचानक तनहा लगता है|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
और तो सब कुछ ठीक है लेकिन कभी-कभी यूँ ही,
चलता-फिरता शहर अचानक तनहा लगता है|
निदा फ़ाज़ली
वापस न जा वहाँ कि तेरे शहर में ‘मुनीर’,
जो जिस जगह पे था वो वहाँ पर नहीं रहा|
मुनीर नियाज़ी
मुझ में ही कुछ कमी थी कि बेहतर मैं उनसे था,
मैं शहर में किसी के बराबर नहीं रहा|
मुनीर नियाज़ी
हमारे शहर में बे-चेहरा लोग बसते हैं,
कभी-कभी कोई चेहरा दिखाई पड़ता है|
जाँ निसार अख़्तर
बूढ़ी पगडंडी शहर तक आकर,
अपने बेटे तलाश करती है|
गुलज़ार
बसा था शहर में बसने का इक सपना जिन आँखों में,
वो उन आँखों मे घर जलने का मंज़र लेके आया है|
राजेश रेड्डी
अच्छी नहीं है शहर के रस्तों की दोस्ती
आँगन में फैल जाए न बाज़ार देखना…..!
निदा फ़ाज़ली
इंशाजी उठो अब कूच करो इस शहर में दिल को लगाना क्या।
वहशी को सुकूं से क्या मतलब जोगी का शहर में ठिकाना क्या॥
इब्ने इंशा
ये सारे शहर में दहशत-सी क्यों हैं,
यक़ीनन कल कोई त्योहार होगा|
राजेश रेड्डी
लगेगी आग तो सम्त-ए-सफ़र न देखेगी,
मकान शहर में कोई नज़र न आएगा|
वसीम बरेलवी