
धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो
ज़िन्दगी क्या है, किताबों को हटाकर देखो |
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
धूप में निकलो घटाओं में नहाकर देखो
ज़िन्दगी क्या है, किताबों को हटाकर देखो |
निदा फ़ाज़ली
ज़ख्म दिल के फिर हरे करने लगी,
बदलियाँ, बरखा रूतें, पुरवाइयाँ|
कैफ़ भोपाली
धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो न,
बाबा मेरे नाम का बादल भेजो न|
राहत इन्दौरी
सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियां,
दुख, बिजलियों की आग में बादल नहा लिए|
कुंवर बेचैन
किसे खबर थी बढ़ेगी कुछ और तारीक़ी,
छुपेगा वो किसी बदली में चांदनी की तरह।
क़तील शिफाई
बरसात का बादल तो, दीवाना है क्या जाने,
किस राह से बचना है, किस छत को भिगोना है|
निदा फाज़ली