
गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा,
मुद्दतों के बाद कोई हम-सफ़र अच्छा लगा|
अहमद फ़राज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा,
मुद्दतों के बाद कोई हम-सफ़र अच्छा लगा|
अहमद फ़राज़
हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,
दोनों चलते रहें कहां तन्हा|
मीना कुमारी (महज़बीं बानो)