
कंजूस कोई जैसे गिनता रहे सिक्कों को,
ऐसे ही मैं यादों के लम्हात बरतता हूँ ।
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कंजूस कोई जैसे गिनता रहे सिक्कों को,
ऐसे ही मैं यादों के लम्हात बरतता हूँ ।
राजेश रेड्डी
और तो मुझ को मिला क्या मेरी मेहनत का सिला,
चंद सिक्के हैं मेरे हाथ में छालों की तरह|
जां निसार अख़्तर