कभी कभी हल्की-फुल्की बात भी करनी चाहिए, यही सोचते हुए आज काका हाथरसी जी की एक रचना शेयर कर रहा हूँ| अपने ज़माने में काका जी काव्य-मंच की एक ज़रूरी आइटम माने जाते थे| बाद में तो कुछ ऐसा होता गया की मंचों पर हास्य कविताओं का ही बोलबाला हो गया| वैसे यह संतुलन बनता-बिगड़ता रहता है|
लीजिए आज आप स्वर्गीय काका जी की यह रचना पढ़ लीजिए, और हाँ इसमें दिमाग लगाने की बिलकुल आवश्यकता नहीं है, एक छात्र का विवरण है इसमें, यद्यपि तब से अब तक ज़माना बहुत बदल चुका है-
फादर ने बनवा दिये तीन कोट¸ छै पैंट¸ लल्लू मेरा बन गया कालिज स्टूडैंट। कालिज स्टूडैंट¸ हुए होस्टल में भरती¸ दिन भर बिस्कुट चरें¸ शाम को खायें इमरती। कहें काका कविराय¸ बुद्धि पर डाली चादर¸ मौज कर रहे पुत्र¸ हडि्डयां घिसते फादर।
पढ़ना–लिखना व्यर्थ हैं¸ दिन भर खेलो खेल¸ होते रहु दो साल तक फर्स्ट इयर में फेल। फर्स्ट इयर में फेल¸ जेब में कंघा डाला¸ साइकिल ले चल दिए¸ लगा कमरे का ताला। कहें काका कविराय¸ गेटकीपर से लड़कर¸ मुफ़्त सिनेमा देख¸ कोच पर बैठ अकड़कर।
प्रोफ़ेसर या प्रिंसिपल बोलें जब प्रतिकूल¸ लाठी लेकर तोड़ दो मेज़ और स्टूल। मेज़ और स्टूल¸ चलाओ ऐसी हाकी¸ शीशा और किवाड़ बचे नहिं एकउ बाकी। कहें काका कवि, राय भयंकर तुमको देता¸ बन सकते हो इसी तरह ‘बिगड़े दिल नेता।’
एक बार फिर से आज मैं हिन्दी हास्य कविता के दुर्लभ हस्ताक्षर, स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य जी की एक कविता शेयर कर रहा हूँ| यह एक लंबी हास्य कविता है जो उन्होंने एक ऐसे छात्र के बहाने से लिखी है, जो इतिहास की परीक्षा देने जाता है लेकिन उसे कुछ भी नहीं आता है|
लीजिए प्रस्तुत है यह सुंदर हास्य कविता –
इतिहास परीक्षा थी उस दिन, चिंता से हृदय धड़कता था, थे बुरे शकुन घर से चलते ही, दाँया हाथ फड़कता था|
मैंने सवाल जो याद किए, वे केवल आधे याद हुए, उनमें से भी कुछ स्कूल तलक, आते-आते बर्बाद हुए|
तुम बीस मिनट हो लेट द्वार पर चपरासी ने बतलाया, मैं मेल-ट्रेन की तरह दौड़ता कमरे के भीतर आया|
पर्चा हाथों में पकड़ लिया, आँखें मूंदीं टुक झूम गया, पढ़ते ही छाया अंधकार, चक्कर आया सिर घूम गया|
उसमें आए थे वे सवाल जिनमें मैं गोल रहा करता, पूछे थे वे ही पाठ जिन्हें पढ़ डाँवाडोल रहा करता|
यह सौ नंबर का पर्चा है, मुझको दो की भी आस नहीं, चाहे सारी दुनिय पलटे पर मैं हो सकता पास नहीं|
ओ! प्रश्न-पत्र लिखने वाले, क्या मुँह लेकर उत्तर दें हम, तू लिख दे तेरी जो मर्ज़ी, ये पर्चा है या एटम-बम|
तूने पूछे वे ही सवाल, जो-जो थे मैंने रटे नहीं, जिन हाथों ने ये प्रश्न लिखे, वे हाथ तुम्हारे कटे नहीं|
फिर आँख मूंदकर बैठ गया, बोला भगवान दया कर दे, मेरे दिमाग़ में इन प्रश्नों के उत्तर ठूँस-ठूँस भर दे|
मेरा भविष्य है ख़तरे में, मैं भूल रहा हूँ आँय-बाँय, तुम करते हो भगवान सदा, संकट में भक्तों की सहाय|
जब ग्राह ने गज को पकड़ लिया तुमने ही उसे बचाया था, जब द्रुपद-सुता की लाज लुटी, तुमने ही चीर बढ़ाया था|
द्रौपदी समझ करके मुझको, मेरा भी चीर बढ़ाओ तुम, मैं विष खाकर मर जाऊंगा, वर्ना जल्दी आ जाओ तुम|
आकाश चीरकर अंबर से, आई गहरी आवाज़ एक, रे मूढ़ व्यर्थ क्यों रोता है, तू आँख खोलकर इधर देख|
गीता कहती है कर्म करो, चिंता मत फल की किया करो, मन में आए जो बात उसी को, पर्चे पर लिख दिया करो|
मेरे अंतर के पाट खुले, पर्चे पर क़लम चली चंचल, ज्यों किसी खेत की छाती पर, चलता हो हलवाहे का हल|
मैंने लिक्खा पानीपत का दूसरा युध्द भर सावन में, जापान-जर्मनी बीच हुआ, अट्ठारह सौ सत्तावन में|
लिख दिया महात्मा बुध्द महात्मा गांधी जी के चेले थे, गांधी जी के संग बचपन में आँख-मिचौली खेले थे|
राणा प्रताप ने गौरी को, केवल दस बार हराया था, अकबर ने हिंद महासागर, अमरीका से मंगवाया था|
महमूद गजनवी उठते ही, दो घंटे रोज नाचता था, औरंगजेब रंग में आकर औरों की जेब काटता था|
इस तरह अनेकों भावों से, फूटे भीतर के फव्वारे, जो-जो सवाल थे याद नहीं, वे ही पर्चे पर लिख मारे|
हो गया परीक्षक पागल सा, मेरी कॉपी को देख-देख, बोला- इन सारे छात्रों में, बस होनहार है यही एक|
औरों के पर्चे फेंक दिए, मेरे सब उत्तर छाँट लिए, जीरो नंबर देकर बाकी के सारे नंबर काट लिए|
आज मुझे यहाँ क्या शेयर करना है, यह तो पहले से ही घोषित है| हिन्दी काव्य मंचों के प्रसिद्ध हास्य कवि स्वर्गीय ओमप्रकाश आदित्य जी की एक कविता को मैंने कल शेयर करना प्रारंभ किया था| जी हाँ नेताजी के हास्य-व्यंग्यमय नख-शिख वर्णन में कुछ अंगों के बारे में कल बात कर ली थी, कुछ अंगों का वर्णन बाकी था|
लीजिए आज प्रस्तुत है नेताजी का नख-शिख वर्णन करने वाली उनकी कविता का यह दूसरा भाग –
गर्दन
मटके जैसी गरदन पर ढक्कन-सी ठोड़ी कितनी बार झुकी यह गरदन यह मत पूछो अनगिन बार उठी है फोटो खिंचवाने को अनगिन मालाओं का भारी बोझ पड़ा है बेचारी पर|
वक्षस्थल
वक्षस्थल चट्टान उठाए पत्थर-सा दिल त्रिवली-तिकड़म पंथ पेट की पगडंडी पर गुप्त पंथ काले धन का तस्कर चोरों का इसी पंथ से लुकते-छिपते धीरे-धीरे नाभि कुंड में समा गई सभ्यता देश की जिसको पाकर कटि-प्रदेश फैला थैली-सा!
पेट
पेट वक्ष से बड़ा, पेट से बड़ी कमर है ज्यों-ज्यों बढ़ती है महंगाई त्यों-त्यों कटि बढ़ती जाती है सुरसा-हनुमान में होड़ लगी हो जैसे गोल मेज-सी कमर पर मत पेटी-सा पेट बहुमत खाकर बहुत सा, गए पलंग पर लेट!
कंधे
कंधों पर गरदन है या गरदन पर कंधे इन कंधों को देख सांड भी शर्माते हैं इतना ढोया भार देश का इन कंधों ने अब ये स्वयं देश को ही भारी पड़ते हैं
हाथ
अजगर जैसी लम्बी बांहेंचांदी की खुरपी जैसे नाखून अंगुलियां हैं कटार-सी फिर भी इनके ये कर-कमल कहे जाते हैं| इन हाथों से हाथ मिलाना खेल नहीं है इन हाथों के हस्ताक्षर के सारे अक्षर स्वर्णाक्षर हैं क्या न किया इन हाथों ने भारत की ख़ातिर उद्घाटन करते-करते घिस गईं लकीरें पूरी उम्र न जितनी जेबें काटीं किसी जेबकतरे ने एक वर्ष में उतने फीते काटे इन कोमल हाथों ने अवतारों के हाथ हुआ करते घुटनों तक इनके पिंडली तक लटके हैं|
पिंडली-पांव
विरोधियों के पिंड-दान-सी चुस्त पिंडली गड़े हुए धन जैसे टखने नीचे दो सोने की ईंटें जिन पर जड़े हुए दस मोती स्वर्ण-चरण को चाट रहे चांदी के चमचे आचरणों को कौन देखता चरण बहुत अच्छे हैं भारत-माता की छाती पर घाव सरीखे दिखते हैं जो हैं सब चिन्ह इन्हीं चरणों के!
चाल (चलन)
चाल चुनावों से पहले चीते-सी लम्बी मंत्रीमंडल में आने के लिए सांप-सी टेढ़ी-मेढ़ी मंत्री पद पा जाने पर मदमस्त हाथी-सी धीमी-धीमी गिरगिट जैसा रंग देह का बगुले जैसा वेश देश ध्यान में ये डूबे हैं, इनमें डूबा देश!
आज मैं हिन्दी हास्य कविता के एक अनूठे हस्ताक्षर स्वर्गीय ओम प्रकाश आदित्य जी की एक कविता शेयर कर रहा हूँ| आदित्य जी निर्मल हास्य सृजित करने में माहिर थे| कभी उन्होंने छंद को नहीं छोड़ा और कभी किसी फूहड़ अभिव्यक्ति का सहारा नहीं लिया| मेरा सौभाग्य है कि मुझे कई बार उनको अपने आयोजनों में बुलाने और उनको सुनने का अवसर मिला| पिछले दिनों किसी कवि से यह भी जानने को मिला था कि जब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधान मंत्री थे, तब वे कभी कभी आदित्य जी को अपनी नई कविताएं सुनाकर उनकी राय लेते थे|
यह कविता भी आज की आधुनिकता पर एक मीठा व्यंग्य करती है| यह कविता काफी लंबी थी, इसका कुछ भाग मैं दे रहा हूँ| लीजिए इस कविता का आनंद लीजिए-
सांझ हुई दिन बीत गया, दिन हारा तम जीत गया। मन सपनों के महक उठे, तरुओं पर खग चहक उठे। एक नीम के तरुवर पर, बैठे थे दो खग सुन्दर। एक डाल पर मैना थी, मैना सूर्य उदयना थी। स्वर्ण नीड़ में लेटी थी, ऊँचे घर की बेटी थी।
अंग्रेजी में गाती थी, हिंदी में शर्माती थी। इंग्लिश उसकी अच्छी थी, किसी मेम की बच्ची थी। उसी डाल पर तोता था, बैठा बैठा रोता था। तोता भोला भाला था, नीली कंठी वाला था। वो हिंदी में अच्छा था, निर्धन घर का बच्चा था।
मौसम कुछ कुछ सर्द हुआ, हमदर्दी का दर्द हुआ। मैना बोली हाउ डू यू डू, तोता बोला व्याकुल हूँ। उड़ कर ऊपर जाता हूँ, फिर नीचे आ जाता हूँ। जब नीचे आ जाता हूँ , फिर ऊपर उड़ जाता हूँ। कोई निश्चित पंथ नहीं, पथ का कोई अंत नहीं। सपनों की जलती होली, मिस मैना हंस कर बोली। मिस्टर तोते थिंकर हो, लगता है तुम किंकर हो।
तोता बोला हे चपले, विरल जनम में हरि जप ले। मैना बोली हे साधो, तुम हो मिट्टी के माधो। बूढ़े होकर हरि जपना, जंगल में जाकर तपना। तोता बोला गूढ़ गते, भज गोविंदम मूढ़ मते। मैना बोली यंग हो तुम, लेकिन दिल से तंग हो तुम।
उड़े इंडिया गेट गए, हरी घास पर लेट गए। शीतल मंद सुवात चली, कम्पित करती गात चली। रस की भीनी रात चली, और लव मैरिज की बात चली। मैना बोली यू लव मी? तोता बोला तू लव मी। मैं ब्राह्मण का बेटा हूँ, अपने कुल में जेठा हूँ। तू किस कुल की बाला है? किसने तुझको पाला है?
मैं हूँ अग्निहोत्रवता, क्या है तेरा गोत्र बता? मैना ने महसूस किया, कुल को इंट्रोड्यूस किया। मम्मी मेरी कोर्ट गयी, लेकर डाईवोर्स गयी। भाग हमारे तले गए, डैडी मेरे चले गए। डिग्री लेने लन्दन में, सेंट मिलाने चन्दन में।
तोता बोला हे मीते, नूतन युग की नवनीते। मेरा कुल तो कच्चा है, तेरा ही कुल अच्छा है। हम गठबंधन जोड़ेंगे, हर बंधन को तोड़ेंगे। कुसुम कली सी खिलना कल, आठ बजे फिर मिलना कल।
दूजे दिन का किस्सा है, लव का अंतिम हिस्सा है। रख दिल पर पत्थर तोता, नैनों में जल भर तोता। दो घंटे से खड़ा हुआ, एक डाल में पड़ा हुआ। देख रहा था इधर उधर, हाय ये मैना गयी किधर। तभी किसी का कोमल सर, आ टिका तोते के कंधे पर।
ओ माई डीयर आई हैव कम, तोता बोला ओ निर्मम। तेरी प्रणय प्रतीक्षा में, बैठ स्कूटर रिक्शा में। सब सड़कों का भ्रमण किया, दोपहरी तक रमण किया। कहीं न तेरे चिन्ह मिले, सब चौराहे खिन्न मिले। मुझसे दंभ किया तूने, बहुत विलम्ब किया तूने।
मैना हँस के ख़ुदक गई, दो फुट पीछे फुदक गयी। कितने इनोसेंट हो तुम, बुद्धू सौ परसेंट हो तुम। कच्चे हो लव नॉलेज में, क्या पढ़ते हो कॉलेज में। हँस दी मैना यू नॉटी, तोते को च्योंटी काटी।
मैं हूँ व्हिस्की तुम हो रम, तोता बोला सुन्दरतम। मैना कुछ आगे सरकी, तोते की बाहें फड़की। पाँखों से टच पाँख हुई, सभी इन्द्रियाँ आँख हुईं। तोता मन में फूल गया, हिंदी पढना भूल गया। तोता बोला यू लवली, सुन्दरता की एक कली। दिल पर चलती ट्रेन हो तुम, मीठा मीठा पेन हो तुम।
ब्यूटी में भी बीट हो तुम, आय हाय कितनी स्वीट हो तुम। मैं दिल्ली का तोता हूँ, कनाट प्लेस में रोता हूँ। तुम हो पेरिस की बुलबुल, मैना बोली वंडरफुल। हिंदी इंग्लिश एक हुए, जब दो पंजे शेक हुए। हिंदी जब अंग्रेज़ हुई, दिल की धड़कन तेज हुई।
कल्चर देकर कर्ज़े में, बैठ विदेशी दर्जे में। वे दो आँसू लूट गए, भाग देश के फूट गए। आओ हम सब ध्यान करें, मिल कर यह गुणगान करें। आई लव यू एंड यू लव मी, या मैं लव तू एंड तू लव मी।