
हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में,
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हमने भी सोकर देखा है नये-पुराने शहरों में,
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है ।
निदा फ़ाज़ली
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे|
आधी सोई आधी जागी,थकी दोपहरी जैसी मां |
निदा फ़ाज़ली