
जो फ़स्ल ख़्वाब की तैयार है तो ये जानो,
कि वक़्त आ गया फिर दर्द कोई बोने का|
जावेद अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जो फ़स्ल ख़्वाब की तैयार है तो ये जानो,
कि वक़्त आ गया फिर दर्द कोई बोने का|
जावेद अख़्तर
पहले भी कुछ लोगों ने जौ बो कर गेहूँ चाहा था,
हम भी इस उम्मीद में हैं लेकिन कब ऐसा होता है|
जावेद अख़्तर
घर के आंगन मैं भटकती हुई दिन भर की थकन,
रात ढलते ही पके खेत सी शादाब लगे|
निदा फ़ाज़ली