
रिश्ते गुज़र रहे हैं लिए दिन में बत्तियाँ,
मैं बीसवीं सदी की अँधेरी सुरंग हूँ|
सूर्यभानु गुप्त
आसमान धुनिए के छप्पर सा
रिश्ते गुज़र रहे हैं लिए दिन में बत्तियाँ,
मैं बीसवीं सदी की अँधेरी सुरंग हूँ|
सूर्यभानु गुप्त