
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है|
दुष्यंत कुमार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है|
दुष्यंत कुमार
उफ़ुक़ अगरचे पिघलता दिखाई पड़ता है,
मुझे तो दूर सवेरा दिखाई पड़ता है|
जाँ निसार अख़्तर
तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालूम,
रात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची|
राहत इन्दौरी
तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची,
ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची|
राहत इन्दौरी