
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई|
गुलज़ार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई|
गुलज़ार
चेहरा-चेहरा राम-भजन,
जोगी का इकतारा दिन|
सूर्यभानु गुप्त
पाला हुआ कबूतर है,
उड़, लौटे दोबारा दिन|
सूर्यभानु गुप्त