
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं,
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की|
बशीर बद्र
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं,
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की|
बशीर बद्र
दिन भी चुपचाप सर झुकाये था,
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है|
जावेद अख़्तर