वो कूचा वो मकाँ याद रहेगा!

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा,
वो शहर वो कूचा वो मकाँ याद रहेगा|

इब्न-ए-इंशा

ग़म को जो अपना बताते रहे!

मेरे ग़म को जो अपना बताते रहे,
वक़्त पड़ने पे हाथों से जाते रहे|

वसीम बरेलवी

अगर याद भी न आऊँ उसे!

जो हम-सफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है ‘फ़राज़’,
अजब नहीं है अगर याद भी न आऊँ उसे|

अहमद फ़राज़

वो भी बहुत ग़म से चूर था!

कल मैंने उसको देखा तो देखा नहीं गया,
मुझ से बिछड़ के वो भी बहुत ग़म से चूर था|

मुनीर नियाज़ी

ज़िंदगी हिज्र की कहानी है!

मुझसे कहता था कल फ़रिश्ता-ए-इश्क़,
ज़िंदगी हिज्र की कहानी है|

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहुत अपने से डर शाम के बाद!

यही मिलने का समय भी है बिछड़ने का भी,
मुझको लगता है बहुत अपने से डर शाम के बाद|

कृष्ण बिहारी ‘नूर’

तिरे साथ एक दुनिया थी!

हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा’द ये मा’लूम,
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी|

अहमद फ़राज़

मिल के बिछड़ना ज़रूर था!

दुनिया है ये किसी का न इसमें क़ुसूर था,
दो दोस्तों का मिल के बिछड़ना ज़रूर था|

आनंद नारायण मुल्ला

वो मलाल में मिला मुझे!

गया तो इस तरह गया कि मुद्दतों नहीं मिला,
मिला जो फिर तो यूँ कि वो मलाल में मिला मुझे|

मुनीर नियाज़ी

यकीं कुछ कम है!

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी,
दिल में उम्मीद तो काफी है, यकीं कुछ कम है|

शहरयार