
उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा,
वो शहर वो कूचा वो मकाँ याद रहेगा|
इब्न-ए-इंशा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा,
वो शहर वो कूचा वो मकाँ याद रहेगा|
इब्न-ए-इंशा
मेरे ग़म को जो अपना बताते रहे,
वक़्त पड़ने पे हाथों से जाते रहे|
वसीम बरेलवी
जो हम-सफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है ‘फ़राज़’,
अजब नहीं है अगर याद भी न आऊँ उसे|
अहमद फ़राज़
कल मैंने उसको देखा तो देखा नहीं गया,
मुझ से बिछड़ के वो भी बहुत ग़म से चूर था|
मुनीर नियाज़ी
मुझसे कहता था कल फ़रिश्ता-ए-इश्क़,
ज़िंदगी हिज्र की कहानी है|
फ़िराक़ गोरखपुरी
यही मिलने का समय भी है बिछड़ने का भी,
मुझको लगता है बहुत अपने से डर शाम के बाद|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा’द ये मा’लूम,
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी|
अहमद फ़राज़
दुनिया है ये किसी का न इसमें क़ुसूर था,
दो दोस्तों का मिल के बिछड़ना ज़रूर था|
आनंद नारायण मुल्ला
गया तो इस तरह गया कि मुद्दतों नहीं मिला,
मिला जो फिर तो यूँ कि वो मलाल में मिला मुझे|
मुनीर नियाज़ी
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी,
दिल में उम्मीद तो काफी है, यकीं कुछ कम है|
शहरयार