
अहद-ए-वफ़ा यारों से निभाएँ नाज़-ए-हरीफ़ाँ हँस के उठाएँ,
जब हमें अरमाँ तुमसे सिवा था अब हैं पशेमाँ तुम से ज़ियादा|
मजरूह सुल्तानपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अहद-ए-वफ़ा यारों से निभाएँ नाज़-ए-हरीफ़ाँ हँस के उठाएँ,
जब हमें अरमाँ तुमसे सिवा था अब हैं पशेमाँ तुम से ज़ियादा|
मजरूह सुल्तानपुरी
बदन पर नई फ़स्ल आने लगी,
हवा दिल में ख़्वाहिश जगाने लगी|
आदिल मंसूरी
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही,
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हम भी अमृत के तलबगार रहे हैं लेकिन,
हाथ बढ़ जाते हैं ख़ुद ज़हर-ए-तमन्ना की तरफ़|
राही मासूम रज़ा
जिस क़दर उससे त’अल्लुक़ था चला जाता है,
उसका क्या रंज हो जिसकी कभी ख़्वाहिश नहीं की|
अहमद फ़राज़
तेरा ख़याल, तेरी तलब तेरी आरज़ू,
मैं उम्र भर चला हूँ किसी रौशनी के साथ|
वसीम बरेलवी
जब दिल में ज़रा भी आस न हो इज़्हार-ए-तमन्ना कौन करे,
अरमान किए दिल ही में फ़ना अरमान को रुस्वा कौन करे|
आनंद नारायण मुल्ला
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ,
ऐसे ज़िद्दी हैं परिंदे कि उड़ा भी न सकूँ|
राहत इन्दौरी
आरज़ू को दिल ही दिल में घुट के रहना आ गया,
और वो ये समझे कि मुझको रंज सहना आ गया|
आनंद नारायण मुल्ला
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं,
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बा’द|
कैफ़ी आज़मी