
यहां तक आते आते सूख जाती है कई नदियां
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।
दुष्यंत कुमार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
यहां तक आते आते सूख जाती है कई नदियां
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।
दुष्यंत कुमार