
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं,
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे|
बशीर बद्र
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं,
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे|
बशीर बद्र
ये दयार-ए-इश्क़ है इसमें सहर,
बस्तियाँ कम कम हैं वीराने बहुत|
महेन्द्र सिंह बेदी ‘सहर’