
हमको उठना तो मुँह अँधेरे था,
लेकिन इक ख़्वाब हमको घेरे था|
जावेद अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हमको उठना तो मुँह अँधेरे था,
लेकिन इक ख़्वाब हमको घेरे था|
जावेद अख़्तर
चिड़ियों के चहकार में गूंजे, राधा-मोहन अली-अली|
मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती, घर की कुंडी जैसी मां |
निदा फ़ाज़ली