
काम तो हैं ज़मीं पर बहुत,
आसमाँ पर खुदा किसलिए|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
काम तो हैं ज़मीं पर बहुत,
आसमाँ पर खुदा किसलिए|
निदा फ़ाज़ली
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है,
ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है|
जावेद अख़्तर
जिस्म से रूह तलक अपने कई आलम हैं,
कभी धरती के, कभी चांद नगर के हम हैं |
निदा फ़ाज़ली
सब उसी के हैं हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आसमाँ,
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा|
बशीर बद्र