
मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे,
तन्हाई को गीत में ढालेंगे गीतों को गाएँगे|
राही मासूम रज़ा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे,
तन्हाई को गीत में ढालेंगे गीतों को गाएँगे|
राही मासूम रज़ा
सर-ए-शाम से रतजगा के वो सामाँ,
वो पिछले पहर नींद आने की रातें|
फ़िराक़ गोरखपुरी
ऐश-ए-दुनिया की जुस्तुजू मत कर,
ये दफ़ीना मिला नहीं करता|
मुनीर नियाज़ी
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था,
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया|
साहिर लुधियानवी
क़ैद होकर और भी ज़िंदाँ में उड़ता है ख़याल,
रक़्स ज़ंजीरों में भी करते हैं आज़ादाना हम|
अली सरदार जाफ़री
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में,
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते|
बशीर बद्र
है और ही कारोबार-ए-मस्ती,
जी लेना तो ज़िंदगी नहीं है|
अली सरदार जाफ़री
रक़्स-ए-सबा के जश्न में हम तुम भी नाचते,
ऐ काश तुम भी आ गए होते सबा के साथ|
कैफ़ी आज़मी
किसी आँख में नहीं अश्के-ग़म, तेरे बाद कुछ भी नहीं है कम,
तुझे ज़िन्दगी ने भुला दिया, तू भी मुस्कुरा उसे भूल जा।
अमजद इस्लाम
जब-जब मौसम झूमा हमने कपड़े फाड़े, शोर किया,
हर मौसम शाइस्ता रहना कोरी दुनियादारी है|
निदा फ़ाज़ली