
इन बादलों की आंख में पानी नहीं रहा,
तन बेचती है भूख एक मुट्ठी धान में।
उदय प्रताप सिंह
आसमान धुनिए के छप्पर सा
इन बादलों की आंख में पानी नहीं रहा,
तन बेचती है भूख एक मुट्ठी धान में।
उदय प्रताप सिंह