हसरत का जहाँ याद रहेगा!

आँखों में सुलगती हुई वहशत के जिलौ में,
वो हैरत ओ हसरत का जहाँ याद रहेगा|

इब्न-ए-इंशा

दास्ताँ थी निहाँ तेरे आँख उठाने में!

उसी की शरह है ये उठते दर्द का आलम,
जो दास्ताँ थी निहाँ तेरे आँख उठाने में|

फ़िराक़ गोरखपुरी

निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं!

टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती,
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं|

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किसी का सोचना अच्छा लगा!

सुरमई आँखों के नीचे फूल से खिलने लगे,
कहते कहते कुछ किसी का सोचना अच्छा लगा|

अमजद इस्लाम अमजद

निगाहों से अदा होते हैं!

हाल-ए-दिल मुझ से न पूछो मिरी नज़रें देखो,
राज़ दिल के तो निगाहों से अदा होते हैं|

मजरूह सुल्तानपुरी

तिरी आँख कैसे झपक गई!

मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में,
मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई|

बशीर बद्र

लुटाती रहीं गौहर तेरी आँखें!

ख़ाली जो हुई शाम-ए-ग़रीबाँ की हथेली,
क्या क्या न लुटाती रहीं गौहर तेरी आँखें|

मोहसिन नक़वी

मुझसे बिछड़ कर तिरी आँखें!

फिर कौन भला दाद-ए-तबस्सुम उन्हें देगा,
रोएँगी बहुत मुझसे बिछड़ कर तिरी आँखें|

मोहसिन नक़
वी

समुंदर तिरी आँखें!

भड़काएँ मिरी प्यास को अक्सर तिरी आँखें,
सहरा मिरा चेहरा है समुंदर तिरी आँखें|

मोहसिन नक़वी