
आँखों में सुलगती हुई वहशत के जिलौ में,
वो हैरत ओ हसरत का जहाँ याद रहेगा|
इब्न-ए-इंशा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
आँखों में सुलगती हुई वहशत के जिलौ में,
वो हैरत ओ हसरत का जहाँ याद रहेगा|
इब्न-ए-इंशा
उसी की शरह है ये उठते दर्द का आलम,
जो दास्ताँ थी निहाँ तेरे आँख उठाने में|
फ़िराक़ गोरखपुरी
आँखें पहचानती हैं आँखों को,
दर्द चेहरा-शनास होता है|
गुलज़ार
टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती,
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
सुरमई आँखों के नीचे फूल से खिलने लगे,
कहते कहते कुछ किसी का सोचना अच्छा लगा|
अमजद इस्लाम अमजद
हाल-ए-दिल मुझ से न पूछो मिरी नज़रें देखो,
राज़ दिल के तो निगाहों से अदा होते हैं|
मजरूह सुल्तानपुरी
मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में,
मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई|
बशीर बद्र
ख़ाली जो हुई शाम-ए-ग़रीबाँ की हथेली,
क्या क्या न लुटाती रहीं गौहर तेरी आँखें|
मोहसिन नक़वी
फिर कौन भला दाद-ए-तबस्सुम उन्हें देगा,
रोएँगी बहुत मुझसे बिछड़ कर तिरी आँखें|
मोहसिन नक़वी
भड़काएँ मिरी प्यास को अक्सर तिरी आँखें,
सहरा मिरा चेहरा है समुंदर तिरी आँखें|
मोहसिन नक़वी