
यों लगता है सोते जागते औरों का मोहताज हूँ मैं,
आँखें मेरी अपनी हैं पर उनमें नींद पराई है|
क़तील शिफ़ाई
आसमान धुनिए के छप्पर सा
यों लगता है सोते जागते औरों का मोहताज हूँ मैं,
आँखें मेरी अपनी हैं पर उनमें नींद पराई है|
क़तील शिफ़ाई
ढूँढे है तो पलकों पे चमकने के बहाने,
आँसू को मेरी आँख में आना नहीं आता|
वसीम बरेलवी
अपनी मासूमियों के पर्दे में
हो गयी वो नज़र सयानी भी।
फ़िराक़ गोरखपुरी
लाख हुस्ने-यक़ीं से बढ़कर है
उन निगाहों की बदगुमानी भी।
फ़िराक़ गोरखपुरी
मेरी आँखों पे ही क्यों ये तोहमतें,
अपने बारे में भी सोचा आपने।
नक़्श लायलपुरी
वो आँखों में काजल वो बालों में गजरा,
हथेली पे उसके हिना महकी महकी|
हसरत जयपुरी
फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूंढे हमने बहाने हों,
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सचमुच के मयख़ाने हों|
इब्ने इंशा
न वो आँख ही तेरी आँख थी, न वो ख़्वाब ही तेरा ख़्वाब था,
दिले मुन्तज़िर तो है किसलिए, तेरा जागना उसे भूल जा।
अमजद इस्लाम
ख़मोशी साज़ होती जा रही है,
नज़र आवाज़ होती जा रही है|
आनंद नारायण ‘मुल्ला’
इस इक नज़र के बज़्म में क़िस्से बने हज़ार,
उतना समझ सका जिसे जितना शुऊर था|
आनंद नारायण ‘मुल्ला’