
कब तक अभी रह देखें ऐ क़ामत-ए-जानाना,
कब हश्र मुअ’य्यन है तुझको तो ख़बर होगी|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कब तक अभी रह देखें ऐ क़ामत-ए-जानाना,
कब हश्र मुअ’य्यन है तुझको तो ख़बर होगी|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
वाइ’ज़ है न ज़ाहिद है नासेह है न क़ातिल है,
अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना,
कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कब जान लहू होगी कब अश्क गुहर होगा,
किस दिन तिरी शुनवाई ऐ दीदा-ए-तर होगी|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी,
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र ‘फ़ैज़’ न जाने क्या हुए,
रह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
दिल से तो हर मोआ’मला करके चले थे साफ़ हम,
कहने में उनके सामने बात बदल बदल गई|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी,
जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई,
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
‘फ़ैज़’ तकमील-ए-ग़म भी हो न सकी,
इश्क़ को आज़मा के देख लिया|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़