
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूठा, झूठी प्रीत हमारी हो,
फ़र्ज़ करो इस प्रीत के रोग में सांस भी हम पर भारी हो|
इब्ने इंशा
आसमान धुनिए के छप्पर सा
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूठा, झूठी प्रीत हमारी हो,
फ़र्ज़ करो इस प्रीत के रोग में सांस भी हम पर भारी हो|
इब्ने इंशा
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे,
झूठ की कोई इन्तहा ही नहीं।
कृष्ण बिहारी ‘नूर’