
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं|
राहत इन्दौरी
सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी,
और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं|
राजेश रेड्डी
एक पगली मेरा नाम जो ले शरमाये भी घबराये भी,
गलियों गलियों मुझसे मिलने आये भी घबराये भी|
मोहसिन नक़वी