
ज़िंदगी जैसी तवक्को थी नहीं, कुछ कम है,
हर घड़ी होता है अहसास कहीं कुछ कम है|
शहरयार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ज़िंदगी जैसी तवक्को थी नहीं, कुछ कम है,
हर घड़ी होता है अहसास कहीं कुछ कम है|
शहरयार
देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ,
हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ|
निदा फ़ाज़ली
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का,
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है|
वसीम बरेलवी
ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे।
क़तील शिफाई
आज गुलज़ार साहब का एक गीत शेयर करने का मन हो रहा है। इस गीत को फिल्म – सीमा के लिए रफी साहब ने शंकर जयकिशन जी के संगीत निर्देशन में गाया है । गुलज़ार साहब तो भाषा में प्रयोग करने के लिए प्रसिद्ध हैं और हमारी फिल्मों को अनेक खूबसूरत गीत उन्होंने दिए हैं।
लीजिए प्रस्तुत है गुलज़ार साहब का यह खूबसूरत गीत-
आज के लिए इतना ही।
नमस्कार।
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