
कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे,
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही|
दुष्यंत कुमार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे,
कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही|
दुष्यंत कुमार
अग़्यार का शिकवा नहीं इस अहद-ए-हवस में,
इक उम्र के यारों ने भी दिल तोड़ दिया है|
महेश चंद्र नक़्श
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं,
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते|
बशीर बद्र
आया न ‘क़तील’ दोस्त कोई,
सायों को गले लगा रहा हूँ|
क़तील शिफ़ाई
दुनिया है ये किसी का न इसमें क़ुसूर था,
दो दोस्तों का मिल के बिछड़ना ज़रूर था|
आनंद नारायण मुल्ला
हमसे दरवेशों के घर आओ तो यारों की तरह,
हर जगह ख़स-ख़ाना ओ बर्फ़ाब मत देखा करो|
अहमद फ़राज़
चौराहे बाग़ बिल्डिंगें सब शहर तो नहीं,
कुछ ऐसे वैसे लोगों से याराना चाहिए|
निदा फ़ाज़ली
ब-नाम-ए-कुफ्र-ओ-ईमाँ बे-मुरव्वत हैं जहाँ दोनों,
वहाँ शैख़-ओ-बरहमन की शनासाई भी होती है|
क़तील शिफ़ाई
दोस्तों का क्या है वो तो यूँ भी मिल जाते हैं मुफ़्त,
रोज़ इक सच बोलकर दुश्मन कमाने चाहिएँ|
राजेश रेड्डी
अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत करके,
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते|
राहत इन्दौरी