
मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली,
इसी तरह से बसर हम ने ज़िंदगी कर ली|
कैफ़ी आज़मी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मिले न फूल तो काँटों से दोस्ती कर ली,
इसी तरह से बसर हम ने ज़िंदगी कर ली|
कैफ़ी आज़मी
चराग़ों का घराना चल रहा है,
हवा से दोस्ताना चल रहा है|
राहत इन्दौरी
दोस्ती जब किसी से की जाए,
दुश्मनों की भी राय ली जाए|
राहत इन्दौरी
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ,
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ|
वसीम बरेलवी
भूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्ती,
उसको भी अपनी तबीअ’त का समझ बैठे थे हम|
फ़िराक़ गोरखपुरी
हमसे पूछो न दोस्ती का सिला,
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा|
सुदर्शन फ़ाकिर
मौत तक दोस्ती निभाते हैं,
आदमी से बहुत बड़े हैं पेड़|
सूर्यभानु गुप्त
अपने रुत्बे का कुछ लिहाज़ ‘मुनीर’,
यार सबको बना लिया न करो|
मुनीर नियाज़ी
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो ‘फ़राज़,’
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला|
अहमद फ़राज़
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम,
ये भी बहुत है तुझको अगर भूल जाएँ हम|
अहमद फ़राज़