
सुर्ख़ आहन पर टपकती बूँद है अब हर ख़ुशी,
ज़िंदगी ने यूँ तो पहले हमको तरसाया न था|
क़तील शिफ़ाई
आसमान धुनिए के छप्पर सा
सुर्ख़ आहन पर टपकती बूँद है अब हर ख़ुशी,
ज़िंदगी ने यूँ तो पहले हमको तरसाया न था|
क़तील शिफ़ाई
कुछ नहीं इसके सिवा ‘जोश’ हरीफ़ों का कलाम,
वस्ल ने शाद किया हिज्र ने नाशाद किया|
जोश मलीहाबादी
या दिल की सुनो दुनिया वालो या मुझ को अभी चुप रहने दो,
मैं ग़म को ख़ुशी कैसे कह दूँ जो कहते हैं उनको कहने दो|
कैफ़ी आज़मी
चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है,
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे ग़ुरूर आ जाता है|
साहिर लुधियानवी
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ,
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया|
साहिर लुधियानवी
बहुत ख़ुश हो कि उसने कुछ कहा है,
न कहकर वो मुकर जाए तो कहना|
जावेद अख़्तर
अब वो दुनिया अजीब लगती है,
जिसमें अम्न-ओ-अमान बाक़ी है|
राजेश रेड्डी
पागल हुए जाते हो ‘फ़राज़’ उससे मिले क्या,
इतनी सी ख़ुशी से कोई मर भी नहीं जाता|
अहमद फ़राज़
मुद्दत के बा’द उसने जो की लुत्फ़ की निगाह,
जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े|
कैफ़ी आज़मी
अगर तबस्सुम-ए-ग़ुंचा की बात उड़ी थी यूँही,
हज़ार रंग में डूबी हुई हवा क्यूँ है|
राही मासूम रज़ा