
सब का दिल हो अपने जैसा अनहोनी सी बात लगे,
’नक़्श’ यह क्या सोचा करते हो बैठ के अपने यारों में।
नक़्श लायलपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
सब का दिल हो अपने जैसा अनहोनी सी बात लगे,
’नक़्श’ यह क्या सोचा करते हो बैठ के अपने यारों में।
नक़्श लायलपुरी
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है,
किसकी आहट सुनता है वीराने में।
गुलज़ार
जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का,
कही आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ।
बशीर बद्र
इस दिल के दरीदा दामन को देखो तो सही सोचो तो सही।
जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली को फैलाना क्या॥
इब्ने इंशा
रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने,
आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं|
क़तील शिफ़ाई
प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं,
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं|
क़तील शिफ़ाई
जाने कितनी बार ये टूटा, जाने कितनी बार लुटा,
फिर भी सीने में इस पागल दिल का मचलना जारी है|
राजेश रेड्डी
अगर ये पाँव में होते तो चल भी सकता था,
ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल।
कुँअर बेचैन
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं,
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे|
बशीर बद्र
सब डरते हैं, आज हवस के इस सहरा में बोले कौन,
इश्क तराजू तो है, लेकिन, इस पे दिलों को तौले कौन|
राही मासूम रज़ा