
दिल का वो हाल हुआ है ग़म-ए-दौराँ के तले,
जैसे इक लाश चटानों में दबा दी जाए|
जाँ निसार अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दिल का वो हाल हुआ है ग़म-ए-दौराँ के तले,
जैसे इक लाश चटानों में दबा दी जाए|
जाँ निसार अख़्तर
शिकायत तेरी दिल से करते करते,
अचानक प्यार तुझ पर आ गया है|
फ़िराक़ गोरखपुरी
दिल से तो हर मोआ’मला करके चले थे साफ़ हम,
कहने में उनके सामने बात बदल बदल गई|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में,
कोई दीवार सी गिरी है अभी|
नासिर काज़मी
एक धुएँ का मर्ग़ोला सा निकला है,
मिट्टी में जब दिल बोने की कोशिश की|
गुलज़ार
ये दिल है कि जलते सीने में इक दर्द का फोड़ा अल्लहड़ सा,
ना गुप्त रहे ना फूट बहे कोई मरहम हो कोई निश्तर हो|
इब्न ए इंशा
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो,
इस बात से हमको क्या मतलब ये कैसे हो, ये क्यूँकर हो|
इब्न ए इंशा
या दिल की सुनो दुनिया वालो या मुझ को अभी चुप रहने दो,
मैं ग़म को ख़ुशी कैसे कह दूँ जो कहते हैं उनको कहने दो|
कैफ़ी आज़मी
वो दिल जो मैंने माँगा था मगर ग़ैरों ने पाया है,
बड़ी शय है अगर उसकी पशेमानी मुझे दे दो|
दिल के उफ़क़ तक अब तो हैं परछाइयाँ तिरी,
ले जाए अब तो देख ये वहशत कहाँ कहाँ|
फ़िराक़ गोरखपुरी