कुछ रचना पंक्तियाँ ऐसी लिखी जाती हैं कि वे मुहावरा बन जाती हैं| जैसे डॉ बशीर बद्र जी का एक शेर था- ‘उजाले अपनी यादों के, हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए|’ ऐसी ही एक पंक्ति आज की कविता की है, जिसको अक्सर लोग कहावत की तरह दोहराते हैं| वैसे इसके रचनाकार ऐसे हैं, जिनकी कविताएं हम बचपन में पढ़ा करते थे, राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत कविताएं- ‘वंदना के इन स्वरों में, एक स्वर मेरा मिला लो’ आदि|
लीजिए आज प्रस्तुत है हमारे स्वाधीनता संग्राम के समय सक्रिय -स्वर्गीय सोहन लाल द्विवेदी जी की यह प्रेरक कविता, जिसकी एक पंक्ति को आज भी प्रेरणा देने के लिए दोहराया जाता है-

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती|
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है,
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती|
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती|
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है,
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में,
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती|
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती|
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती|
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती|
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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