
लगेगी आग तो सम्त-ए-सफ़र न देखेगी,
मकान शहर में कोई नज़र न आएगा|
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
लगेगी आग तो सम्त-ए-सफ़र न देखेगी,
मकान शहर में कोई नज़र न आएगा|
वसीम बरेलवी
नई तहज़ीब ने ये गुल खिलाए,
घरों से लापता अंगनाइयां हैं|
सूर्यभानु गुप्त
कहां तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए,
कहां चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए|
दुष्यंत कुमार
कभी ग़म की आँधी, जिन्हें छू न पाये,
वफ़ाओं के हम, वो नशेमन बना दें|
सुदर्शन फ़ाकिर
बम घरों पर गिरे कि सरहद पर ,
रूह-ऐ-तामीर जख्म खाती है !
खेत अपने जले कि औरों के ,
जीस्त फ़ाकों से तिलमिलाती है !
साहिर लुधियानवी