
उसके ही बाज़ुओं में और उसको ही सोचते रहे,
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी|
परवीन शाकिर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
उसके ही बाज़ुओं में और उसको ही सोचते रहे,
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी|
परवीन शाकिर