
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं,
होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं|
जावेद अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं,
होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं|
जावेद अख़्तर
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की,
जब होता है कोई हमदम होता है|
जावेद अख़्तर
अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम,
ख़ुद को समेटते हैं यहाँ से वहाँ से हम|
राजेश रेड्डी
हमारा ज़ख्म पुराना बहुत है,
चारागर भी पुराना चाहिए था|
राहत इन्दौरी
आज एक ग़ज़ल शेयर कर रहा हूँ ज़नाब कैफ़ भोपाली साहब की लिखी हुई, कैफ़ भोपाली जी आज के समय के एक मशहूर और लोकप्रिय शायर हैं और इस ग़ज़ल में उन्होंने कुछ बहुत प्यारे शेर लिखे हैं|
लीजिए प्रस्तुत है ज़नाब कैफ़ भोपाली साहब की यह ग़ज़ल –
दाग दुनिया ने दिए जख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफे ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फलाने से फलाने से फलाने से मिले
ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले
माँ की आगोश में कल मौत की आगोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक्त सुहाने से मिले
कभी लिखवाने गए ख़त कभी पढ़वाने गए
हम हसीनों से इसी हीले बहाने से मिले
इक नया जख़्म मिला एक नई उम्र मिली
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले
एक हम ही नहीं फिरते हैं लिए किस्सा-ए-गम
उन के खामोश लबों पर भी फसाने से मिले
कैसे माने के उन्हें भूल गया तू ऐ ‘कैफ’
उन के खत आज हमें तेरे सिरहाने से मिले
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार
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हम तुम्हारे सामने हैं, फिर तुम्हें डर काहे का,
शौक से अपनी नज़र के वार कर दो यार तुम|
मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी,
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा|
नीरज
ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे।
क़तील शिफाई