
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है,
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है,
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है|
राहत इन्दौरी
मेरे ख़ुदा मैं अपने ख़यालों को क्या करूँ,
अंधों के इस नगर में उजालों को क्या करूँ|
राजेश रेड्डी
जुस्तजू ने किसी मंजिल पे ठहरने न दिया,
हम भटकते रहें आवारा ख्यालों की तरह|
जां निसार अख़्तर