
घर की तामीर चाहे जैसी हो,
इसमें रोने की भी जगह रखना|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
घर की तामीर चाहे जैसी हो,
इसमें रोने की भी जगह रखना|
निदा फ़ाज़ली
यूँ उजालों से वास्ता रखना,
शम्मा के पास ही हवा रखना|
निदा फ़ाज़ली
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी,
कोई आँसू मेरे दामन पे बिखर जाने दे।
नज़ीर बाक़री
ऐ नये दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना,
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे|
नज़ीर बाक़री
अपनी आँखों के समंदर मैं उतर जाने दे,
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे|
नज़ीर बाक़री
मैं एक कतरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है,
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था,
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला|
निदा फ़ाज़ली
आकाश का सूनापन,
मेरे तनहा मन में|
पायल छनकाती तुम,
आजाओ जीवन में|
साँसें देकर अपनी,
संगीत अमर कर दो|
होंठों से छूलो तुम …
इंदीवर
जग ने छीना मुझसे,
मुझे जो भी लगा प्यारा|
सब जीता किये मुझसे,
मैं हर दम ही हारा|
तुम हार के दिल अपना,
मेरी जीत अमर कर दो|
होंठों से छूलो तुम …
इंदीवर
न उम्र की सीमा हो,
न जनम का हो बंधन|
जब प्यार करे कोई,
तो देखे केवल मन|
नई रीत चलाकर तुम,
ये रीत अमर कर दो|
होंठों से छूलो तुम …
इंदीवर