
ज़ंजीर ओ दीवार ही देखी तुम ने तो ‘मजरूह’ मगर हम,
कूचा कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुम से ज़ियादा|
मजरूह सुल्तानपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ज़ंजीर ओ दीवार ही देखी तुम ने तो ‘मजरूह’ मगर हम,
कूचा कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुम से ज़ियादा|
मजरूह सुल्तानपुरी