
जहां न सुख का हो अहसास और न दुख की कसक,
उसी मक़ाम पे अब शायरी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जहां न सुख का हो अहसास और न दुख की कसक,
उसी मक़ाम पे अब शायरी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
किसी मक़ाम पे रुकने को जी नहीं करता,
अजीब प्यास, अजब तिश्नगी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
अकेला इश्क़ है हिज्रो-विसाल* कुछ भी नहीं,
बस एक आलमे-दीवानगी है और मैं हूं|
(*विरह और मिलन)
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
मुक़ाबिल अपने कोई है ज़ुरूर कौन है वो,
बिसाते-दहर है, बाज़ी बिछी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
मेरे वुजूद को अपने में जज़्ब करती हुई,
नई-नई सी कोई रौशनी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
हयात जैसे ठहर सी गयी हो ये ही नहीं,
तमाम बीती हुई ज़िन्दगी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
ये लम्हा ज़ीस्त का बस आख़िरी है और मैं हूं,
हर एक सम्त से अब वापसी है और मैं हूं|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
फ़रेब दे ही गया ‘नूर’ उस नज़र का ख़ुलूस,
फ़रेब खा ही गया मैं, सुभाव ऐसा था|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
वो जिसका ख़ून था वो भी शिनाख्त कर न सका,
हथेलियों पे लहू का रचाव ऐसा था|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’
फिर उसके बाद झुके तो झुके ख़ुदा की तरफ़,
तुम्हारी सम्त हमारा झुकाव ऐसा था|
कृष्ण बिहारी ‘नूर’