हवा ने बुझाए हैं क्या क्या!

कहीं अँधेरे से मानूस हो न जाए अदब,
चराग़ तेज़ हवा ने बुझाए हैं क्या क्या|

कैफ़ी आज़मी

कई बार चराग़ों को बुझा कर!

इस शब के मुक़द्दर में सहर ही नहीं ‘मोहसिन’,
देखा है कई बार चराग़ों को बुझा कर|

मोहसिन नक़वी

चराग़ों को आफ़्ताब करूँ!

अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ,
मैं चाहता था चराग़ों को आफ़्ताब करूँ|

राहत इन्दौरी

तिश्नगी तो मुझे ज़िंदगी से प्यारी है!

इसी से जलते हैं सहरा-ए-आरज़ू में चराग़,
ये तिश्नगी तो मुझे ज़िंदगी से प्यारी है|

वसीम बरेलवी

मिरे साथ जलते जलते!

शब-ए-इंतिज़ार आख़िर कभी होगी मुख़्तसर भी,
ये चराग़ बुझ रहे हैं मिरे साथ जलते जलते|

कैफ़ी आज़मी

उन्हीं की रौशनी जिनके चराग़!

उसकी महफ़िल में उन्हीं की रौशनी जिनके चराग़,
मैं भी कुछ होता तो मेरा भी दिया होता कहीं|

वसीम बरेलवी

हवा से दोस्ताना चल रहा है!

चराग़ों का घराना चल रहा है,
हवा से दोस्ताना चल रहा है|

राहत इन्दौरी

रह जाओगे हैरान ज़रा देख तो लो!

इन चराग़ों के तले ऐसे अँधेरे क्यूँ है,
तुम भी रह जाओगे हैरान ज़रा देख तो लो|

जावेद अख़्तर

तुम्हें मैं मिलूँगा जहाँ रात होगी!

चराग़ों की लौ से सितारों की ज़ौ तक,
तुम्हें मैं मिलूँगा जहाँ रात होगी|

बशीर बद्र

दूर तक रात ही रात होगी!

चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना,
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी|

बशीर बद्र