
किस तरह लोग चले जाते हैं उठ कर चुप-चाप,
हम तो ये ध्यान में लाते हुए मर जाते हैं|
अब्बास ताबिश
आसमान धुनिए के छप्पर सा
किस तरह लोग चले जाते हैं उठ कर चुप-चाप,
हम तो ये ध्यान में लाते हुए मर जाते हैं|
अब्बास ताबिश
बिछड़ के तुझसे कुछ जाना अगर तो इस क़दर जाना,
वो मिट्टी हूँ जिसे दरिया किनारे छोड़ देता है|
वसीम बरेलवी
उठने को उठ तो जाएँ तेरी अंजुमन से हम,
पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए|
जाँ निसार अख़्तर
यार से हमको तगाफ़ुल का गिला है बेजा,
बारहा महफ़िले-जानाँ से उठ आए ख़ुद भी|
अहमद फ़राज़
वो मेरे सामने ही गया और मैं,
रास्ते की तरह देखता रह गया|
वसीम बरेलवी
रुख़्सत के दिन भीगी आँखों उसका वो कहना हाए “क़तील”,
तुम को लौट ही जाना था तो इस नगरी क्यूँ आये थे|
क़तील शिफ़ाई