
वही न मिलने का ग़म और वही गिला होगा,
मैं जानता हूँ मुझे उसने क्या लिखा होगा|
शीन काफ़ निज़ाम
आसमान धुनिए के छप्पर सा
वही न मिलने का ग़म और वही गिला होगा,
मैं जानता हूँ मुझे उसने क्या लिखा होगा|
शीन काफ़ निज़ाम
नाम मिरा था और पता अपने घर का,
उसने मुझको ख़त लिखने की कोशिश की|
गुलज़ार
जब गुज़रती है उस गली से सबा,
ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है|
गुलज़ार
रोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता हूँ,
रोज़ उंगली मेरी तेज़ाब में आ जाती है|
मुनव्वर राना
तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किसका था,
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किसका था|
दाग़ देहलवी
कभी लिखवाने गए ख़त कभी पढ़वाने गए,
हम हसीनों से इसी हीले बहाने से मिले|
कैफ़ भोपाली
ख़त का पढ़ना भी हो गया मुश्किल,
सारा काग़ज़ भिगो गईं आँखें|
नक़्श लायलपुरी